Saturday, October 24, 2009

वापस नीड़ की ऑर....

शरीर थक चुका,
मन ऊब चुका ।|
रात ढल चुकी,
सूरज डूब चुका ।|
किसी को अब अपना हाल बताना है ,
बहुत दिन हुए
अब अपने नीड़ को वापस जाना है ।|

शोहरत के पीछे अंध बने,
रुपयों के पीछे भाग चुके ।|
कुछ अरमानो को तोड़ चुके,
कुछ विश्वासों को दाग चुके ।|
माफ़ी अब कुछ मांगनी हैं,
और खोए प्यार को पाना है ,
अब अपने नीड़ को वापस जाना है ।|

इकले खड़े रह गए हम,
झूठे साथी छूट गए ।|
आँखे भी अब सूनी हैं,
खोखले सपने टूट गए ।|
पुराने लोगों से मिलना है,
नए सपनो को सजाना है,
हाँ
अब अपने नीड़ को वापस जाना है,
अब अपने घर को वापस जाना है ।|