Friday, June 19, 2009

बदलाव

हम सब जानते हैं
समाज को
बदलाव की जरूरत है ,
नफरत से काम नही बनेगा ,
बस
आपसी लगाव की जरूरत है ।
लेकिन शुरुआत
मैं ही क्यूँ करूं ?
मुझे क्या पड़ी है ,
आस-पास देखो
कितनी भीड़ खड़ी है ।
हम क्यूँ भूल जाते है
की हम भी हैं
उसी भीड़ का एक अंग ,
और भीड़ के हर व्यक्ति का
अपने जैसा ही है
सोचने का ढंग ।
अगला तर्क होता है
"अकेला चना
भाढ नही फोड़ सकता है "
लेकिन वही अकेला चना
मिटटी के सहारे
सैंकडों नए चने
पैदा कर सकता है ,
टूटते समाज को
संगठन की और मोड़ सकता है ।
लडाई कितनी भी मुश्किल हो
एक बार
अखाडे में आकर तो देखो ,
फिर वही भीड़ ,
वही सैंकडों चने
तुम्हारे साथ होंगे ,
पहला कदम बढाकर तो देखो ।
बस एक बार
पहला कदम बढाकर तो देखो ।

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