Thursday, June 25, 2009

खो गई ....

बड़े शहर की धक्का-मुक्की में
मेरी जिंदगी कहीं खो गई है ,
प्यार , दोस्ती के साथ -साथ
हँसी भी लापता हो गई है ।
रिश्ते-नाते पीछे छूट गए हैं
पर ये भीड़ आगे धकेलती है ,
पीछे जाने ही नही देती ,
औपचारिकताएं इतनी हैं कि
दिल कि बात जुबान तक
आने ही नही देती ।
इमारतें , सड़कें , दुकाने

सब कुछ इतना बड़ा है
कि इंसानियत छोटी हो गई है ,
हाँ.....इस बड़े शहर में
मेरी जिंदगी कहीं खो गई है ।

कंप्यूटर के साथ खेलकर
ऊब गए हैं
दोस्त और भाई-बहन याद आते हैं ,
पैसे ढेरों हैं जेब में
पर माँ के हाथ का खाना
नही खरीद पाते हैं ।
मेरे छोटे से घर ,
छोटे से कसबे में ,
कितनी शान्ति ,कितना सुकून था ,
मुझे नए दोस्त बनाने ,
नए रिश्ते गढ़ने का जूनून था ।
लम्बी कारें , a.c. कमरें ,
नियोन और मरकरी कि चकाचोंध
अब मुझे बहला नही पाते ,
इन्टरनेट वाले मेरे दोस्त
मेरे ग़मों को सहला नही पाते ।
इस अंधी दौड़ में भागते हुए
मानवता मशीन हो गई है ,
हाँ ....इस बड़े शहर में
मेरी जिंदगी कहीं खो गई है ।

3 comments:

  1. good pic of diamond ring at the moment of total solar eclipse.anyway,good post.

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  2. I like it really a fantastic poem by you keep writing...

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