Monday, June 29, 2009

एक और स्मारक ...

मेरे शहर में हुआ है
चौथे स्मारक का उदघाटन ,
लो जी..और दो-चार लाख का
हो गया हवन ।
मुझे कभी समझ नही आते
राजनीतिके कानून-कायदे ,
आख़िर क्या हैं
इस स्मारक के फायदे ?
पहले तो यह मदद करेगा
थके-हारे पंछियों को
थोड़ा सुस्ताने में ,
और फिर नए लैंडमार्क से
सुविधा होगी
आस-पास के मुहल्लों का
पता बताने में ।
जैसे -अमुक चौक ,
अमुक गली
और हाँ
स्मारक की यह मूर्ति
चमचों की है सबसे भली ।
रिबन काटने,माला चढाने को
नेताजी को आमंत्रित कर लेते हैं ,
और समारोह के लिए आए
सरकारी पैसे से
अपनी जेब भर लेते हैं ।
नेताजी का नाम खोदकर
एक और मारबल
लगा दिया जाता है ,
स्मारक को तो
कुछ ही दिन में
भुला दिया जाता है ।
साथ में ये स्मारक
साम्प्रदायिक दंगे कराने में
बड़े काम आते हैं ,
दूसरे धर्म जात के
स्मारक की मूर्ति तोड़ दो ,
दंगे अपने-आप शुरू हो जाते हैं ।

लेकिन सोचो
अगर ये पैसे स्मारक पर नही
गरीबों पर खर्च किए जाते ,
तो कुछ अनपढ़ बच्चे
दस दर्जे तक पढ़ पाते ।
भूख से मरने वाले को
जब एक मुट्ठी
अन्न की जरूरत होती है ,
तो उसे निहारती
सड़क पर धुप में खड़ी
किसी महापुरुष की मूर्ति
अपनी लाचारी पर रोती है ।

8 comments:

  1. bhaut hi touching poem hai.. aur college chorne ke baad to aur bhi sahi lagti hai..

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  2. सिर्फ दिखावट और चापलूसी के नाम पर करोडों रुपये बर्बाद होते हैं | सरकारी विभागों की हालत तो और खराब है |
    बहरहाल आप की अभिव्यक्ति बहुत अच्छी है | कई पोस्ट पढ़ डाले | संवेदनशील और सूक्ष्म निरीक्षण |
    दर्शन के प्रति आपका झुकाव पसंद आया | आपने पूर्ण सूर्यग्रहण के जो फोटो लगाईं हुई है वो २२ जुलाई को पड़ रहा है |
    उदय प्रकाश जी के ब्लॉग पर अभी एक बहुत बढिया कविता आई है |
    uday-prakash.blogspot.com/2009/06/blog-post_26.html आपको पसंद आयेगी |
    चिट्ठाजगत और ब्लोग्वानी कि विजेट अपने ब्लॉग पर लगाइए और ब्लोग्पोस्ट करने के बाद उस पर क्लिक करिए इससे आपका ब्लॉग तुंरत इन साइट्स पर दिखेगा और आपकी नई प्रविष्टियाँ पाठकों को उपलब्ध हो सकेंगी |
    धन्यवाद |

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  3. सुन्‍दर। शुभकामनाएँ।

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  4. मेरे शहर में हुआ है
    चौथे स्मारक का उदघाटन ,
    लो जी..और दो-चार लाख का
    हो गया हवन ।
    मुझे कभी समझ नही आते
    राजनीतिके कानून-कायदे ,
    आख़िर क्या हैं
    इस स्मारक के फायदे ?

    bahut sahi sawaal uthaayaa hai aur uskaa jawab bhi bilkul sahi hai magar aajkal ke zahil netaaon ke rahte ye mumkin nahi , aapne padhaa nahi hamaare tatha kathit sarwoch nayayaly ko bhi netaao ( ab to jeevit netaaon ke but bhi) ke but lagaane main kuchh buraai nahi aati . un mahanubhav ko 2000 karore rupees ki barbaadi se jayaada payaara paryawaran hai wo to moortiyon ko lagaane per tabhi rok lagaa sakte hain jab inse paryawaran ko nuksaan ho . hairat ki baat hai ki unko jantaa ki gadhi kamaai ko is tarah lutaane main kuchh galat nazar nahi aataa .

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  5. Badhiya.. Supreme Court tak aapki aawaz pahunchi.. badhai.

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  6. Oh My God ! I din't know you were so wonderful at poetry... Prachi di... Kudos hats off.. A great social mudda brought forward beautifuly.. I wanna say one thing.. Its relatively easier to write about pain and emotions in poetry, because maybe that was what poetry was originally all about... But I must say writing something sarcastic and ironic so wonderfuly is not only difficult but also daring... Cheers
    Akanksha

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